निकल रही बारात, न मिल रही दुल्हन, ना हो रहे फेरे
बीकानेर. होलाष्टक में भले ही मांगलिक कार्य वर्जित होते है, लेकिन बीकानेर में हर साल दुल्हा विष्णुरूप धारण कर अपने घर-परिवार और मोहल्लेवासियों के साथ बारात लेकर निकलता है। विभिन्न जातियों और समाज के घरों के आगे न केवल दुल्हे को पोखने की रस्म निभाई जाती है बल्कि बारातियों की खातिरदारी भी की जाती है। घर परिवार की महिलाएं विवाह के मांगलिक गीत भी गाती है। लेकिन दुल्हे को न दुल्हन मिलती है और ना ही फेरे होते है। दुल्हा बिना दुल्हन के ही वापस लौट आता है। बीकानेर में हर साल धुलंडी के दिन इस परम्परा का निर्वहन होता है। यह परम्परा रियासतकाल से चली आ रही है। इस बार 29 मार्च को इस परम्परा का निर्वहन होगा। जिसमें हर्ष जाति का दुल्हा बारात लेकर फिर निकलेगा।
300 वर्षो से चल रही परम्परा
धुलंडी के दिन करीब तीन शताब्दी से इस परम्परा का निर्वहन हो रहा है। हर्ष जाति के राधा किशन हर्ष के अनुसार तीन शताब्दी पहले हुए एक विवाद और उसके बाद हुए समझौते व हुए विवाह संबंधों के प्रतीक रूप में इस परम्परा का निर्वहन हर साल किया जाता है। उन्होंने बताया कि जगन्नाथ-देवकिशन वनमाली हर्ष परिवार की ओर से हर वर्ष दुल्हे को तैयार किया जाता है। मोहता चौक भैरव मंदिर के पास से दुल्हे की बारात रवाना होती है।
16 स्थानों पर पोखने की रस्म
हर्ष जाति का दुल्हा हर साल धुलंडी के दिन बारात के साथ कीकाणी व्यास, लालाणी व्यास, मूंधड़ा और दम्माणी परिवार के निर्धारित मकानों के आगे पहुंचता है। राधा किशन हर्ष के अनुसार इस दुल्हे को निर्धारित 16 मकानों के आगे महिलाएं पोखने की रस्म निभाती है और बारातियों का स्वागत किया जाता है।
विवाह गीतों का गायन
धुलंडी के दिन बारात निकलने के दौरान पारम्परिक रूप से विवाह गीतों का गायन किया जाता है। जहां दुल्हे के साथ चल रहे बाराती ‘तू मत डरपे हो लाडला ’ गीत का गायन करते है। वहीं दुल्हे के निर्धारित मकान पर पहुंचने पर उस घर-परिवार की महिलाएं दुल्हे को पोखने के पारम्परिक मांगलिक गीतों ‘हर आयो हर आयो काशाी रो वासी आयो’ तथा ‘सात सुपार्यो लाडो सिंगोडे रो सटको’ का गायन करती है।
प्रेम-सौहार्द का प्रतीक
हर साल होली के अवसर पर यह परम्परा विभिन्न जातियों के आपसी प्रेम-सौहार्द और घनिष्ठ संबंधों के रूप में आयोजित होती है। विजय शंकर हर्ष के अनुसार परम्परा निर्वहन के दौरान विवाह की परम्पराओं का निर्वहन किया जाता है वहीं पूरे क्षेत्र में उल्लास और उमंग का वातावरण बनता है। मान्यता है कि हर्ष जाति का जो कुंवारा लडका होली के दिन दुल्हा बनता है उसका विवाह भी जल्द हो जाता है।
source https://www.patrika.com/bikaner-news/the-procession-comes-out-on-the-day-of-holi-6766637/
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